Sunday, March 6, 2011

लाडनू बना तेरापंथ की raajdhaanee

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लाडनूं तेरापंथ की राजधानी घोषित

आचार्य महाश्रमण के तीन दिवसीय प्रवास ने बदली लाडनूं की फिजां

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें आचार्य महाश्रमण ने लाडनूं को तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी के रूप में घोषित किया है। इससे पूर्व नौंवें आचार्य गुरूदेव तुलसी ने लाडनूं को तेरापंथ का केन्द्र बनाने का भरसक प्रयास किया था, लेकिन वे इसे राजधानी के रूप में इतना खुला घोषित नहीं कर पाए थे। लाडनूं आचार्य तुलसी का जन्म-स्थान है और आचार्य तुलसी के जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर लाडनूं को तेरापंथ का गढ घोषित किए जाने से लोगों को अपार हर्ष का अनुभव हुआ है। आचाय्र महाश्रमण के साथ युवाचार्य के रूप में महाश्रमण यहां से गए थे और उनके देवलोकगमन के बाद आचार्य के रूप में पदारोहण के पश्चात् पहली बार आचार्य महाश्रमण लाडनूं पधारे। लाडनूं वासियों ने पलक पांवड़े बिछाकर उनका स्वागत किया और उनके अल्पकाल के प्रवास का अधिकतम फायदा उठाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की संरचना इस मौके पर की। जैनविश्वभारती का उन्होंने स्वयं घूमकर एकबार पूरा अवलोकन किया, वहां की एक-एक गतिविधि की जानकारी हासिल की। वे जैनविश्वभारती और उससे सम्बद्ध विश्वविद्यालय से काफी अभिभूत हुए। उन्हें आचार्य तुलसी की परिकल्पना में बहुत दम लगा। वे तुलसी के स्मारक पर भी गए। उन्हें लगा कि यह लाडनूं ही वह स्थान है, जहां तेरापंथ अपना विश्व स्तरीय स्वरूप धारण कर सकता है। उन्होंने अपने अभिनन्दन समारोह में कहा, अब तक सरदारशहर को तेरापंथ की राजधानी माना जाता रहा है, अब लाडनूं नगर राजधानी होगा, इसकी घोषणा करता हूं। लाडनूं के साथ तेरापंथ का बहुत बड़ा इतिहास रहा है। इसके अलावा जैन विश्व भारती, विश्वविद्यालय, विशाल ग्रन्थागार, धर्मोपकरण भंडार, वृद्ध साध्वर सेवा केंद्र, पारमाथिग्क शिक्षण संस्थान, समण श्रेणी यहां मौजूद है।

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के तीन खण्डों का लोकार्पण

जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय परिसर में नवनिर्मित्त आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय भवन, आचार्य तुलसी महिला शिक्षा केन्द्र भवन व आचार्य महाप्रज्ञ केन्द्रीय शैक्षणिक भवन का लोकार्पण करने के पश्चात्ï आयोजित समारोह में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि ज्ञान की आराधना होनी चाहिए, ज्ञान को सर्वोपरि तत्व माना गया है। उन्होंने जैन संस्थाओं से जैन विद्या के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता बताते हुए कहा कि जैन विश्व भारती एवं उससे सम्बद्घ विश्वविद्यालय का तो कत्र्तव्य है कि वह जैन विद्या पर आवश्यक ध्यान दें। उन्होंने सभी तेरापंथ संस्थाओं को परस्पर मनोमालिन्य दूर कर मिलकर काम करने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि तभी समाज एवं अन्य लोगों का भला हो सकता है। उन्होंने जैन विश्व भारती को कामधेनु की उपमा देते हुए कहा कि जब तक इसका दोहन नहीं हो, समाज लाभान्वित नहीं हो सकता। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा बनाए गए आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के मुख्य भवन एवं उनसे सम्बन्धित आचार्य तुलसी महिला शिक्षा केन्द्र व आचार्य महाप्रज्ञ केन्द्रीय शैक्षणिक भवन का उद्ïघाटन आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में क्रमश: राजेन्द्र बच्छावत, श्रीमती कुमुद नवरत्नमल बच्छावत व श्रीमती मंगलीदेवी दुधेडिय़ा ने किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष चैनरूप चिण्डालिया नें बताया कि महासभा अपने संगठन के दायित्व को पूरा करने के साथ शिक्षा के आयाम के प्रति भी सदैव सजग रही है। आचार्य तुलसी के जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के तीन खण्डों के भवन निर्माण का दायित्व भी निर्धारित दस महीनों के समय में महासभा ने पूर्ण किया है। उन्होंने अपने सम्बोधन में इन भवनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

मुनि महेन्द्रकुमार ने कहा कि आज शिक्षा विभिन्न आयामों में फैलती जा रही है लेकिन उसका मूल केन्द्र गायब है। आंतरिक चेतना और मानवीय मूल्यों के बिना शिक्षा कभी पूर्ण नहीं हो सकती। हमें आंतरिक चेतना का रूपान्तरण करना होगा । उन्होंने जैन विद्वानों को तैयार करने की योजना पर भी प्रकाश डालते हुए जैन दर्शन, जैन साधना व समग्र जैन संस्कृति के उद्घार के लिए आवश्यक बताया। आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की प्राचार्या डा. समणी मल्लिप्रज्ञा ने समाज में महिला विकास और महिला शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इस क्षेत्र में तेरापंथ धर्मसंघ की विशेष भूमिका की जानकारी दी।

जैन विश्व भारती के अध्यक्ष सुरेन्द्र चौरडिय़ा ने आचार्य महाप्रज्ञ के करीब साढ़े चार साल पूर्व प्राप्त संदेश का वाचन करते हुए जैन विश्व भारती को आचार्य तुलसी के सपने की कामधेनु बताया व जैन विश्व भारती को विश्वविद्यालय की पितृ संस्था बताया और कहा कि दोनों निरन्तर मिलकर काम कर रहे हैं।

जैन विश्व भारती की कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ कभी सम्प्रदाय में बंधकर नहीं रहे। उनका चिंतन समूचे मानव समुदाय के लिए था। उसी के अनुरूप हम समाज में एक बड़े परिवर्तन का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या साध्वी ऋतुयशा ने भी संस्था के निरन्तर विकास और विभिन्न बहुआयामी कोर्स शुरू करने की आवश्यकता बताई।

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