Wednesday, May 6, 2009
वापस लाएं काला धन
स्विस बैंकों में भारत की अवैध रूप से कुल जमाराशि शेष दुनिया के देशों के कुल काले धन से भी ज्यादा है। एक आकलन के अनुसार भारत का 70 लाख करोड रूपया इन बैंकों में जमा है। अमरीका की तरह अगर यह राशि भारत में वापस आ जाती है तो देश के हर गरीब परिवार को 10 लाख रूपए मिलेंगे। आर्थिक मंदी और बराक ओबामा की ऎतिहासिक सफलता ने दुनिया का एक भला कर दिया। अमरीका ने स्विस बैंकों पर दबाव डालकर अपने देश के 250 ऎसे धनाढ्य लोगों के गोपनीय खाते खुलवा लिए, जिन्होंने स्विट्जरलैंड के यू. बी. एस. बैंक में 3120 करोड रूपए अवैध रूप से जमा कर रखे थे। दुनिया के पांच देशों का नाम काला धन जमा करने वालों में सबसे ऊपर है। ये हैं भारत, रूस, ब्रिटेन, उक्रेन व चीन। आश्चर्य की बात ये है कि इस सूची में न सिर्फ भारत का नाम सबसे ऊपर है बल्कि भारत की स्विस बैंकों में अवैध रूप से कुल जमाराशि शेष दुनिया के देशों के कुल काले धन से भी ज्यादा है। एक आकलन के अनुसार भारत का 70 लाख करोड रूपया इन बैंकों में जमा है। अमरीका की तरह अगर यह धन भारत में वापस आ जाता है तो भारत के हर गरीब परिवार को 10 लाख रूपए मिलेंगे। यह धन आने से भारत की गरीबी मिट जाएगी और देश विदेशी ऋण से भी मुक्त हो जाएगा। इतनी बडी रकम का अवैध रूप से बाहर जाना यह सिद्ध करता है कि आजादी के बाद भारत के नेताओं, अधिकारियों, उद्योगपतियों, क्रिकेट और फिल्मी सितारों, ड्रग माफियाओं आदि ने देश को लूट-लूटकर ही अकूत दौलत विदेशों में जमा की है। दरअसल स्विस बैंकों का काम करने का तरीका इतना गोपनीय रहा है कि दाहिने हाथ को पता नहीं चलता कि बांया हाथ क्या कर रहा है इसलिए भारत के ये भ्रष्ट धनाढ्य अपना अवैध धन स्विस बैंकों में जमा करवाते रहे हैं। बैंक के मैनेजर और कर्मचारियों तक को नहीं पता होता कि किस खाते में किस व्यक्ति की रकम है। इस व्यवसाय के जानकार बताते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपनी अकूत दौलत स्विस बैंक में जमा करने जाता है तो वह बैंक के मैनेजर से संपर्क करता है। यदि मैनेजर को लगता है कि यह ग्राहक ठीक-ठाक है तो वह उसे बैंक के दो ऎसे अधिकारियों से मिलवा देता है जो उस व्यक्ति का खाता खुलवाने का काम करते हैं। ये दो या तीन व्यक्ति उन अधिकारियों में से होते हैं जिनकी विश्वसनीयता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। इन्हें नए खाताधारी का बैंकिंग सचिव कहा जाता है। सब कागजात पूरे हो जाने के बाद खाताधारी को स्विस बैंक का एकाउंट नम्बर दे देते हैं। किन्तु अपनी फाइल में असली खाता नंबर न डालकर एक कोड नाम डाल देते हैं। मसलन अगर खाता खोलने वाले का नाम राजकुमार लालवानी है तो उसके खाते का नंबर हो सकता है प्रिंस रेड 98, खाते का नंबर ग्राहक को बताने के बाद उसका कोड फिर बदल दिया जाता है और अब सम्बंधित बैंकिंग सचिव इस खाते से सम्बंधित फाइल को बंद करके एक ऎसे कक्ष में ले जाते हैं जहां काउंटर के ऊपर धुंधले कांच की दीवार बनी होती है। इस दीवार की तली में जो बारीक-सी झिरि होती है उसमें से होकर नए खातेदार की यह गोपनीय फाइल दूसरी तरफ सरका दी जाती है। दूसरी तरफ जो व्यक्ति उस फाइल को लेता है उसे यह नहीं पता होता कि यह फाइल किसकी है और शीशे के बाहर से फाइल देने वाले बैंकिंग सचिवों को यह नहीं पता होता कि शीशे की दीवार के पीछे इस फाइल को किसने लेकर लॉकर में रखा है। इस तरह नए खातेदार के खाते से सम्बंधित जो पांच-छह लोग होते हैं उनमें से किसी को भी पूरी जानकारी नहीं होती। मजे की बात तो यह है कि स्विस बैंक में धन जमा करने वालों को ब्याज मिलना तो दूर इसके उलट धन के संरक्षण के लिए उन्हें नियमित फीस देनी होती है। इस तरह स्विट्जरलैंड में अथाह धन जमा हो गया है। स्विट्जरलैंड के लोगों को अब इस बात का अहसास हुआ कि दुनिया भर में गरीबी, कुपोषण व भूख बढती जा रही है। दुनिया के तमाम देशों के भ्रष्ट नेता और नौकरशाह अपने भ्रष्ट आचरण के कारण जनता को दुख दे रहे हैं। जब दुनिया भर के अपराधी स्विट्जरलैंड में चोरी का धन छुपाएंगे तो स्विट्जरलैंड इस अनैतिकता के पाप का भागीदार बने बिना नहीं रह सकता। ऎसे विचारों ने स्वीट्जरलैंड के नागरिकों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया। इसके साथ ही दुनियाभर में स्विस बैंकों के खातों के प्रति जागरूकता और उनमें अवैध रूप से जमा अपने देश का धन वापस देश में लाने की मांग कई देशों में उठने लगी। इस सबका नतीजा यह हुआ कि स्विस नागरिकों ने अपने संविधान में संशोधन किया। चूंकि स्विट्जरलैंड दुनिया का सबसे परिपक्व लोकतंत्र है इसलिए वहां हर कानून बनने के पहले जनता का आम मतदान कराया जाता है। बहुमत मिलने पर ही कानून बन पाता है। इसलिए जब स्विस नागरिकों को नैतिक दायित्व का एहसास हुआ तो उन्होंने एक कानून बनाया जिसके अनुसार अब स्विस बैंकों में खोले गए खाते गोपनीय नहीं रहे। स्विट्जरलैंड की या अन्य किसी भी देश की सरकारें इन खातों की जानकारी प्राप्त कर सकती हंै। इसके लिए करना सिर्फ यह होगा कि संबंधित देश को उस व्यक्ति के खिलाफ, जिसके स्विस खाता होने का संदेह है, एक आपराधिक मामला दर्ज करना होगा। इसके बाद उस देश की सरकार स्विट्जरलैंड की सरकार को आधिकारिक पत्र लिखेगी जिसमें उस व्यक्ति के विरूद्ध दर्ज आपराधिक मामले का हवाला देते हुए स्विट्जरलैंड की सरकार से अनुरोध करेगी कि वह पता करके बताए कि उस व्यक्ति का कोई गोपनीय खाता स्विट्जरलैंड के बैंकों में तो नहीं है इस पत्र के प्राप्त हो जाने के बाद स्विट्जरलैंड की सरकार सभी बैंकों को इस पत्र की प्रतिलिपियां भेजेगी और उन बैंकों से यह जानकारी मांगेगी। अगर किसी बैंक में सम्बंधित व्यक्ति का गोपनीय खाता चल रहा होगा तो बैंक को उसकी पूरी जानकारी अपनी सरकार को देनी होगी। यह आश्चर्य की बात है कि ईमानदारी का ढिंढोरा पीटने वाले हमारे पिछले कई प्रधानमंत्रियों ने स्विस बैंकों से यह जानकारी मांगने की पहल नहीं की, जबकि अन्य कई देश ये पहल कर चुके हैं। भारत से लगभग 80 हजार लोग हर वर्ष स्विट्जरलैंड जाते हैं। इनमें 25 हजार लोग ऎसे हैं जो साल में कई बार दौरा करते हैं। ऎसे लोगों पर खुफिया जांच करके इनके चाल-चलन से इनके बैंकों तक पहुंचा जा सकता है। ओबामा की पहल से पे्ररित होकर इस चुनाव के पहले भारत में स्विस बैंकों से काला धन वापस लाने के लिए एक माहौल बनाया जा रहा है, जो शुभ लक्षण है। पर यह माहौल वे लोग बना रहे हैं जिनका लक्ष्य काला धन वापस लाना नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पर हमला बोलना है। ये सिद्ध करना चाहते हैं कि व्यक्तिगत जीवन में ईमानदार रहने वाले प्रधानमंत्री इतने बडे मुद्दे पर बेईमानों को संरक्षण दे रहे हैं। इससे ज्यादा गम्भीरता इस अभियान की नहीं है।
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