Saturday, April 23, 2011

अपनी दिशा न भूले मीडिया- निरंकुश न बने लोकप्रिय होती ब्लॉग पत्रकारिता


पत्रकारिता को हमेशा एक आदर्श के रूप में देखा जाता रहा है। जनता की भावनाओं का खुला पृष्ठ होता था पत्रकारिता। मगर आज लगता है स्थितियां बदल गई है। पत्रकारिता जहां प्रिण्ट मीडिया के दायरे से निकल कर रेडियो तक पहुंची तब तक तो सब ठीक था, मगर टीवी चैनलों, इंटरनेट पर वेब-साईट और ब्लॉग पत्रकारिता में घुसे लोगों ने इसे ऐसा आयाम दिया है, जो कतई सुखद नहीं कहा जा सकता। इसमें सुधार लाने के लिए प्रयास किए जाने जरूरी है। हमें निश्चित रूप से पत्रकातिा को स्वस्थ स्वरूप प्रदान करने के लिए पहल करनी चाहिए। इसके लिए पत्रकारिता को बदनाम करने वाली हर हरकत का खुलकर विरोध पत्रकारिता जगत से ही होना जरूरी है। इसके लिए हमें आत्म चिंतन करना चाहिए तथा हर स्थ्िित के बारे में गहराई से सोचना चाहिए।
टीवी पत्रकारिता का सच: ख़बरिया चैनलों में काम कर रहे पत्रकार खुद दुखी हैं। ऐसे पत्रकारों का मानना है कि वे ऐसी स्थिति में हैं कि न तो छोड़ सकते और वहां बने रहना उनके लिए दुश्वार हो गया है। अभिमन्युं की तरह इस पत्रकारिता के चक्रव्यूह में फंसे होने पर उनके प्रति दुख प्रकट किया ही जा सकता है, साथ ही उन्हें अपने व्यवहार में सुधार लाने की सलाह दी जानी भी जरूरी है। हालांकि इन्हीं न्यूज़ चैनलों में कुछ ऐसे पत्रकारों की जमात भी मौजूद है, जो योग्यता के मुकाबले कैसे हैं, यह नहीं कहा जा सकता लेकिन वे न्यूज़ चैनल के मंच का, उसके ग्लैमर का, उसकी पहुंच का इस्तेमाल कर अपनी छवि भी चमकाते हैं और जब भी जहां भी सार्वजनिक तौर पर बोलने का मौक़ा मिलता है, वहां न्यूज़ चैनलों को गरियाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। उनका यह रूप और चरित्र वास्तविक पत्रकारिता करने वालों को हमेशा परेशान करता है। यह अपने पेशे से एक तरह का छलात्कार है, जो क्षणिक तो मजा देता है, लेकिन पत्रकारिता का बड़ा नुक़सान कर डालता है। ख़ुद की छवि को चमकाने के लिए पत्रकारिता पर सवाल खड़े करने वाले इन पत्रकारों की वजह से दूसरे लोगों को आलोचना का मौक़ा और मंच दोनों मिल जाता है। टीवी मीडिया के उन फंसे अभिमन्युओं को चाहिए कि वे चक्रव्यूह में फंसकर दम तोडऩे के बजाय युद्ध का मैदान छोड़ दें। अगर न्यूज़ चैनलों में उनका दम घुटता है तो वे वहां से तत्काल आज़ाद होकर अपना विरोध प्रकट करें। ऐसे पत्रकार बंधु व्यवस्था का विरोध करना तो दूर की बात, कभी अपनी नाख़ुशी भी नहीं जतापाते। मालिकों के सामने भीगी बिल्ली बने रहने वाले इन पत्रकारों को सार्वजनिक विलाप से बचना चाहिए। यह उनके भी हित में है और पत्रकारिता के हित में भी। किसी भी चीज की स्वस्थ आलोचना हमेशा से स्वागत योग्य है, लेकिन व्यक्तिगत छवि चमकाने के लिए की गई आलोचना निंदनीय है।
बेलगाम होती ब्लॉग पत्रकारिता: ब्लॉग पत्रकारिता का एक नवीनतम आयाम है। ब्लॉग तेजी से अपना वर्चस्व कायम करते जा रहे हैं। ब्लॉग पाठकों की संख्या में बेतहासा ईजाफा इसकी बढती लोकप्रियता को इंगित करता है। हिंदी में ब्लॉग के माध्यम से बड़ा काम हो रहा है। यह बिल्कुल सही बात है कि ब्लॉग और नेट के माध्यम से हिंदी के लिए बड़ा काम हो रहा है, लेकिन कुछ ब्लॉगर और वेबसाइट जिस तरह से बेलगाम होते जा रहे हैं, वह हिंदी भाषा के लिए चिंता की बात है।् ब्लॉग पर जिस तरह से व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए ऊलजुलूल बातें लिखी जा रही हैं, वह बेहद निराशाजनक है। कई ब्लॉग तो ऐसे हैं,जहां पहले किसी फ र्जी नाम से कोई लेख लिखा जाता है, फि र बेनामी टिप्पणियां छापकर ब्लैकमेलिंग का खेल शुरू होता है। कुछ कमज़ोर लोग इस तरह की ब्लैकमेलिंग के शिकार हो जाते हैं और कुछ ले-देकर अपना पल्ला छुड़ाते हैं। लेकिन जिस तरह से ब्लॉग को ब्लैकमेलिंग और चरित्र हनन का हथियार बनाया जा रहा है, उससे ब्लॉग की आज़ादी और उसके भविष्य को लेकर ख़ासी चिंता होती है। बेलगाम होते ब्लॉग और वेबसाइट पर अगर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई तो सरकार को इस दिशा में सोचने के लिए विवश होना पड़ेगा। ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है, गाली गलौच और बे सिर-पैर की बातें लिखकर अपने मन की भड़ास निकालने का मंच नहीं।् इस बात पर हिंदी के झंडाबरदारों को गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है। ब्लॉग पर चल रहे इस घटिया खेल पर सभी पत्रकार बंधुओं को विरोध करना चाहिए ताकि हिन्दी पत्रकारिता के इस नए आयाम को एक बेहतर वैश्विक प्रस्तुति के रूप में ताकतवर बनाया जा सके। - सुमित्रा आर्य, सम्पादक
email- editor.sumitra@gmail.com

अपने अधिकारों के प्रति सजग बनें महिलाएं



हाल ही में केन्द्र सरकार ने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए एक नया कानून बनाया है जिससे महिलाओं की स्थिति मजबूत हुई है। वैसे महिलाओं को कई बार ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनके संदर्भ में वे कानून की मदद ले सकती हैं। पर कानूनी मदद पाने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें अपने कानूनी अधिकारों की ठीक-ठीक जानकारी हो। आइए जानते हैं महिलाओं की समस्याओं और उनसे जुड़े कानूनी पक्षों के बारे में कुछ जानकारी-
विवाह का निजी अधिकार
- यदि आप 18 वर्ष की हो गई हैं तो आपको यह अधिकार मिल जाता है कि जिससे चाहे विवाह कर सकती हैं। इसमें मां-बाप तथा संबंधियों को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
क्यों बदलें शादी के बाद उपनाम
- लड़कियों के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा होता है कि क्या वह शादी के बाद अपने पति का उपनाम अपनाने के लिए बाध्य हैं? यद्यपि भारत में यह परम्परा है कि शादी के बाद लड़की के पहले नाम के साथ उसके पति का नाम तथा उपनाम जुड़ जाता है और वह इसी नाम से जानी जाती है। लेकिन यदि लड़की शादी के बाद अपना पहले का परिचय नहीं बदलना चाहती तो कानूनन वह अपना पुराना नाम और पदवी रख सकती है। बहुत सी कामकाजी महिलाएं अपने नाम से ही जानी जाती हैं। वे अपनी निजी पहचान बनाए रखना चाहती हैं। इस तरह शादी के बाद यदि कोई लड़की अपने पति का नाम तथा उपनाम अपने नाम के साथ नहीं लगाना चाहती तो उसे यह अधिकार है कि वह अपने पुराने नाम से ही जानी जाए। ऐसी परिस्थिति में लड़की को शादी के बाद एक एफिडेविट देना होता है कि उसकी शादी फलां व्यक्ति से हुई है तथा शादी के बाद वह अपना पुराना नाम ही कायम रखना चाहती है।
स्त्री-धन पर खुद का अधिकार
- शादी के बाद लड़की को एक और महत्वपूर्ण अधिकार मिलता है वह यह कि जो भी गहने तथा पैसे वह अपने मां-बाप या ससुराल पक्ष से पाती है, उस पर उसका स्वयं का अधिकार होता है। इस बात के लिए वह बाध्य नहीं है कि तलाक की स्थिति में यह धन वह अपने पति या सास-ससुर अथवा मां-बाप को वापस करे।
बच्चे की कानूनी संरक्षक
- लड़की का अन्य अधिकार यह है कि यदि उसके पति की मौत हो जाती है या उसका तलाक हो जाता है तो वह बच्चे का संरक्षक बनने का दावा कर सकती है। अभी तक औरतों को बच्चों का संरक्षक बनने का अधिकार नहीं मिला था। लेकिन अब यह अधिकार उन्हें मिल गया है।
- यदि पति बच्चे को प्राप्त करने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले अपनी याचिका दायर करता है तो भी पत्नी को दावा करने और बच्चे को प्राप्त करने का अधिकार है। औरतों को मिला यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है।
प्रताडऩा पर पति के खिलाफ रिपोर्ट
- यदि औरत अपने पति या ससुरालवालों के द्वारा प्रताडि़त की जाती है तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत उनके खिलाफ आपराधिक रिपोर्ट लिखवाने का अधिकार है।
तलाक का अधिकार
- हिन्दू विवाह कानून के मुताबिक निम्नलिखित कारणों से महिलाएं विवाह-विच्छेद के लिए अर्जी दे सकती हैं-
- अगर पति ने पूर्व पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह कर लिया हो।
- अगर पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और कहीं और रहते हुए उसे दो वर्ष से ज्यादा हो चुका हो।
- अगर पति-पत्नी पर मानसिक या शारीरिक या दोनों तरीकों से जुल्म करता हो।
- अगर पति धर्मभ्रष्ट हो चुका हो या उसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो।
- अगर पति किसी लाइलाज रोग का शिकार हो।
- सुमित्रा आर्य, सम्पादक

एसबीबीजे से उठ रहा है लोगों का विश्वास... किसी भी खाते से कोई भी उठा सकता है मनचाही रकम


नसीराबाद (निर्भीक समाचार सेवा)। स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर ने अपने यहां खोले गए एक बैंक खाते को इस तरह का रूप दे दिया कि उसमें से कोई भी व्यक्ति जब चाहे रूपये निकाल सकता है, और मर्जी आए तब जमा करवा सकता है। यह कोई आश्चर्य नहीं है, हकीकत है और इस हकीकत को अंजाम दिया है एसबीबीजे की नसीराबाद शाखा ने। यहां लोगों में यह आम चर्चा है कि इस बैंक में अब बचत खाते, चालू खाते और सावधि जमा खाते के अलावा यह एक नया प्रकार सार्वजनिक बैंक खाता भी खोला जाने लगा है। किसी के भी खाते से कोई भी रूपये निकाल ले और खाताधारी को खबर तक नहीं लगे और ता और उसे मांगे जाने के बावजूद कोई जानकारी तक नहीं दी जावे तो इस बैंक से ग्राहक का पूरा भरोसा ही उठ जाता है।
31 सालों से था बचत खाता
एसबीबीजे की इस शाखा में 31 साल पहले एक खाता खुलवाया था, यहां के डी.ए.वी. स्कूल के प्रधानाध्यापक मदनलाल गर्ग ने। गर्ग यहां के जाने-माने वकील के अलावा शिक्षाविद भी है। इस समय वे 83 साल के हैंं। विद्यालय से उनकरी सेवानिवृति 1988 में हुई। वे अपने अध्यापन काल से लेकर रिटायरमेंट के बाद तक भी इस खाते में लगातार अपनी बचत की सारी राशि जमा करवाते रहे, ताकि कभी वक्त-जरूरत और बुढापे में काम आवे।
केवल जमा ही करवाया हमेशा
इन मितव्ययी व्यक्ति ने अपने खाते में से कभी भी राशि निकालने के बजाये हमेशा राशि जमा करवाते रहे। उन्होंने कभी चैक बुक तक नहीं प्राप्त की।
बिना निकाले हुआ खाता साफ
इस जमाकर्ता को अचानक 2003 में जानकारी मिली कि उनके खाते को साफ किया जा चुका, उसमें अब कोई खास बैलेन्स नहीं बचा है, तो वे एकबारगी तो सकते में आ गए।
पसीने आ गए खाते की जानकारी तक लेने में
इसके बाद उन्होंने अपने खाते का पूरा विवरण जानने के लिए सैंकड़ों बार प्रयास किए, परन्तु बैंक अधिकारियों ने उन्हें कोई सहयोग नहीं किया। बैंक की मांग पर उन्होंने 150 रूपये की शुल्क भी जमा करवाया, फिर भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई। जब बैंक के उच्चाधिकारियों, बैंक्रिग लोकपाल, सूचना आयोग तक अपीलें दाखिल की, तब कहीं जाकर करीब छह सालों बाद बैंक ने तीन-चार किश्तों में खाते का विवरण तो उपलब्ध करवाया, परन्तु अभी तक यह नहीं बताया गया कि उनका निजी खाता संयुक्त खाता कैसे बन गया?
बिना जानकारी बना दिया संयुक्त खाता
यह बचत खाता संख्या 10348 को बैंक ने बिना खातेदार की जानकारी के संयुक्त खाता बना डाला और यहीं तक मामला सीमित नहीं रहा, इस खाते को एक तरह से सार्वजनिक खाता तक बना दिया गया और बरसों से बैंक उसे इस रूप में संचालित भी कर रहा था।
किस-किस के नाम जुड़े और कटते रहे खाते में
खुद बैंक के कथनानुसार उक्त खाता (बैंक की मर्जी से ही सही) 19 अगस्त 1989 को संयुक्त खाते के रूप में बदला जाकर किसी वी.के.गर्ग का नाम भी उसमें जोड़ दिया गया था। इस वी.के.गर्ग की मृत्यु 15 फरवरी 2004 को हो चुकी। लेकिन इस बैंक खाते की वास्तविकता यह है कि इसमें से तथाकथित संयुक्त खातेदार की मृत्यु से पहले और बाद में भी कुछ अन्य लोगों द्वारा भी लेदेन किया जाता रहा था।
बैंक नहीं बताता अज्ञात लोगों के नाम
मदनलाल गर्ग के इस बैंक खाते में फर्जी तरीकों से अनेक लोग रूपये निकालने, जमा कराने का काम करते रहना बताया गया है। इसमें कूट-रचना द्वारा 19 अगस्त 1989 को किसी वी.के.गर्ग का नाम संयुक्त किए जाने से पहले भी अनेक लागों ने इसमें से रूपये निकाले थे, और संयुक्त नाम जोड़े जाने के बाद भी अज्ञात लोग भी इसमें लेनदेन करते रहे। आश्चर्य है कि वी.के.गर्ग की मौत 15 फरवरी 2004 के बाद भी अनेक लोग इसमें से रूपये निकालत-डालतेे रहे हैं।
बैंक अधिकारियों की चुप्पी क्यों?
अपने खाते से राशि निकालने वाले लोगों की जानकारी बैंक के रिकॉर्ड से दिए जाने की मांग पिछले सात सालों से लगातार खाताधारी मदनलाल गर्ग करते रहे हैं, मगर बैंक अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। लगातार लिखापढी का क्रम जारी रखते हुए अभी हाल ही में उन्होंने फिर एक रजिस्टर्ड पत्र बैंक अधिकारियों को देकर जानकारी मांगी है, परन्तु 14 सितम्बर 2010 से अब तक अधिकारियों ने उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी है।

सुजला महाविद्यालय: स्नातकोत्तर शिक्षण के बावजूद दो जिलों में फंसी कालेज का कौन बने धणी-धोरी

लाडनूं व सुजानगढ शहरों के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 65 पर जसवंतगढ की जमीन पर सम्पूर्ण सुजला नाम से पुकारे जाने वाले क्षेत्र में स्नातकोत्तर शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में सुस्थापित सुजला महाविद्यालय के नाम से मशहूर राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ का वर्तमान स्वरूप कई मोड़ों से गुजरने के बाद निखरा है। सुजानगढ के ज्ञानीराम हरकचन्द सरावगी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय और लाडनूं के सेठ मोतीलाल बैंगानी विज्ञान महाविद्यालयों को मिलाकर एकरूप में गठित यह महाविद्यालय आज एक विशाल रूप ले चुका है।
ज्ञानीराम हरकचंद सरावगी महाविद्यालय का सफर
सन 1968 में सुजानगढ कस्बे में ज्ञानीराम हरकचंद सरावगी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय का गठन किया गया था। इसे अपने शैशवकाल में सुजानगढ के भंवरलाल काला बाल-मंदिर में मात्र 66 विद्यार्थियों की अल्प संख्या के साथ कला एवं वाणिज्य की प्रथम वर्ष स्नातक की कक्षाओं से शुरू किया गया था। इसके बाद 1 जुलाई 1969 में इस महाविद्यालय को राजाजी की कोठी, सुजानगढ में स्थानान्तरित किया गया। बाद में 28 जनवरी 1974 को इसे जसवंतगढ में निर्मित वर्तमान भवन में स्थानान्तरित किया गया, तब से यह निरन्तर यहां चल रहा है। जब इस महाविद्यालय का शिलान्यास किया गया था, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखडिय़ा यहां हेलिकॉप्टर से आए थे। सुजानगढ विधायक फूलचंद जैन के समय में यहां लाडनूं, सुजानगढ, जसवंतगढ और आस-पास ही नहीं सुदूर क्षेत्रों से लोग इस निर्जन स्थान पर पहुंचे और हजारों की संख्या में इस शिलान्यास समारोह में शिरकत की। रेैले के रैले बढते लोगों में उस समय अपार हर्ष देखा गया था।
सेठ मोतीलाल बैंगानी विज्ञान महाविद्यालय का सफरनामा
सत्र 1968-69 में सेठ मोतीलाल बैंगानी विज्ञान महाविद्यालय का प्रारम्भ किया गया था। शुरू में इस महाविद्यालय क ी अध्ययन-व्यवस्था लाडनूं की राजकीय जौहरी उच्च माध्यमिक विद्यालय में शुरू की गई थी। बाद में इसका एक अलग भवन जसवंतगढ की जमीन पर उचित स्थान जानकर बनाया गया। अपने इस नए भवन में यह विज्ञान महाविद्यालय सफलता-पूर्वक चलता रहा। इसमें छात्र संख्या भी बढी। जसवंतगढ ग्राम से जसवंतगढ रेलवे स्टेशन जाने वाली सड़क के एक तरफ कला व वाणिज्य महाविद्यालय था, तो उसके दूसरी तरफ विज्ञान महाविद्यालय एकदम आमने-सामने स्थापित थे, इससे पढने वाले छात्रों में भी परस्पर सामंजस्य रहता था। उस समय लाडनूं व सुजानगढ और जसवंतगढ क्षेत्रों से कॉलेज में पढने वाले सभी छात्र प्राय: साईकिलों से आवागमन करते थे। लाडनूं से जसवंतगढ जाने वाली सड़क को कॉ्रस करके बाईपास रोड स्व. दीपंकर शर्मा के विधायक-काल में बनाई गई थी, जा कालेज के बिलकुल पास से गुजरती थी और एससे आने जाने वाले विद्यार्थियों का मार्ग छोटा होने से समय कम लगता था। कालान्तर में खुत-मालिको ने इस सड़क मार्ग को धीरे-धीरे बंद करके अपने खेतों में मिला लिया।
दोनों महाविद्यालयों का एकीकरण
अपने शुरूआती करीब डेढ दशक तक ये दोनों महाविद्यालय प्रशासनिक एवं अध्यापन की दृष्टि से बिलकुल पृथक-पृथक संचालित किए जाते रहे। बाद में प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से राज्य सरकार ने आदेश जारी करके 1 जनवरी 1982 को दोनों महाविद्यालयों को एकीकृत कर दिया। इसप्रकार दोनों महाविद्यालय संयुक्त होकर एक ही व्यवस्था के अन्तर्गत आ गए। इस राजकी महाविद्यालय में कला, वाणिज्य व विज्ञान तीनों संकाय की कक्षाएं संचालित होने व प्रशासनिक एकरूपता होने से छात्रों के लिय सुविधाजनक हो गया।
स्नातकोत्तर तक क्रमोन्नयन
महाविद्यालय में पढने वाले छात्रों की निरन्तर बढती संख्या और सम्पूर्ण सुजलांचल से स्नातकोत्तर करने की उठती मांग के मद्देनजर इस महाविद्यालय में वाणिज्य व विज्ञान संकायों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा की सुविधा राज्य सरकार ने मंजूर करते हुए उपलब्ध करवा दी।यहां स्नातक स्तर पर प्रथम वर्ष प्रवेश के लिए कुल 550 सीटों की व्यवस्था उपलब्ध, जिसमें इस वष्र कुछ बढोतरी की गई है। इनमें राजकीय नियमानुसार अजा को 16 प्रतिशत, अजजा को 12 प्रतिशत, ओबीसी को 21 प्रतिशत आरक्षण प्रवेश में उपलब्ध है। वर्तमान में इस महाविद्यालय में कुल 1600 नियमित छात्र अध्ययनरत हैं। इस केन्द्र पर करीब 2500 से 3000 छात्र स्वयंपाठी रूप में परीक्षाएं देते हैं।
महाविद्यालय में सुविधाएं
महाविद्यालय में अलग-अलग विषयों के अध्यापन हेतु 20 व्याख्याता कार्यरत है। यहां मौजूद पुस्तकालय में करीब 40 हजार पुस्तके विभिन्न विषयों से सम्बंधित मौजूद हैं। इसमें 20 प्रकार की विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से आजी हैं, जिनसे छात्र नवीनतम जानकारियां प्राप्त करके अपना ज्ञानवद्र्धन कर सकते हैं। महाविद्यालय में सुसज्जित कम्प्यूटर लैब. एवं रासायनिक व जैविक प्रयोगशाला भी उपलब्ध है। शैक्षेणेत्तर गतिविधियों में यहां एन.सी.सी., युवा विकास केन्द्र, एन.आर.सी.सी. का संचालन भी किया जाता है।
प्रमुख समस्याएं
यह महाविद्यालय सुजलांचल के आम लोगों का प्यार समेटे हुए होने के साथ ही उत्कृष्ट परीक्षा-परिणाम भी देता आया है। परन्तु अनेक समस्याएं ऐसी भी हैं, जिनके कारण विद्यार्थी अपने नियमित अध्ययन में अनेक परेशनियों का सामना करने पर मजबूर हैं।
बस-स्टेण्ड की जरूरत: लाडनूं, जसवंतगढ और सुजानगढ तीनों शहरों से दूर निर्जन स्थान पर अवस्थित होने से यहां आने-जाने वाले छात्रों को आवागमन की परेशानियां प्रतिदिन झेलनी पड़ती हैं। ग्राम कसुम्बी, लैड़ी, रोडु, निम्बी जोधां, तंवरा, दुजार, बाकलिया, छापर, चाड़वास, सालासर आदि सैंकड़ों गावों से रोजमर्रा आने वाले छात्रों को भी कॉलेज के सामने बसें नहीं रूकने से काफी परेशान होना पड़ता है और उसका असर उनकी पढाई पर भी पड़ता है। इसके समाधान के रूप में मेगा हाई वे और एन.एच. 65 के क्रास पर बस स्टेण्ड घोषित करके इस समस्या का समाधान अवश्य करना चाहिए।
शुद्ध पेयजल का अभाव: क्षेत्र के प्रसिद्ध पाबोलाव तालाब और जोधानाडा तालाबों के बीच में स्थित होने के बावजूद कॉलेज में अध्ययन करने वाले छात्रों को शुद्ध पीने का पारी नसीब नहीं हो पाता है। जन-प्रतिनिधि और कालेज प्रशासन दोनों ही इस महत्वपूर्ण समस्या की ओर से आंखें मूंदे हुए हैं। जबकि यह सर्वाधिक प्राथमिकता वाली समस्या है। कालेज प्रशासन इस कालेज को चूरू जिले का मानने के कारण चूरू जिले के प्रशासन को इस सम्बंध में लिखता है, जबकि यहां सारा प्रशासनिक नियंत्रण नागौर जिले का लागू होता है। अब इन दो जिलों के बीच फंसी इस कालेज को सुविधाएं उपलब्ध कराए तो आखिर कौन?
-लोकेश नाहर,
कलम कला संवाददाता

कृषि-मंत्री की घोषित सम्पति 306 बीघा कृषि भूमि और 9042 गज में 5 मकान



जयपुर (कलम कला न्यूज)। राजस्थान सरकार के सभी मंत्री अपनी-अपनी सम्पति की घोषणा विधिवत कर चुके हैं। लाडनूं क्षेत्र से विधानसभा के लिए निर्वाचित ओर राज्य सरकार की केबिनेट में कृषि और पशु-पालन विभागों की कमान संभाले हुए कृषि मंत्री हरजीराम बुरड़क ने भी अपनी और अपनी पत्नी के नाम की कुल सम्पति की घोषणा की है।
इस घोषणा के अनुसार कृषि मंत्री के स्वयं व उनकी पत्नी के नाम से कुल 306.25 बीघा कृषि भूमि ग्राम भरनावां, हुडास, लाडनूं व झरडिय़ा में मौजूद है। दोनों के पास कुल नकद राशि 3 लाख 19 हजार 200 रूपये हैं। पत्नी के पास शायद कोई बैंक खाता नहीं है, क्योंकि उसका कोई भी उल्लेख नहीं किया गया है। उनके खुद के बैंक खाते में 3 लाख 87 हजार 677 रूपये की जमा राशि बताई गई है। दोनों पति-पत्नी के पास कुल सोना 410 ग्राम व चांदी 2 किलो है। कृषि मंत्री के खुद के पास कुल 5 मकान हैं, जिनमें जयपुर स्थित दो मकानों सहित कुल 9042 वर्ग गज भूमि पर इन पांचों मकानों का निर्माण किया गया है।
कुल घोषित की गई सम्पति का विवरण इस प्रकार बताया गया है-
खुद के नाम की सम्पति:
धनराशि-
खुद के नाम नकद राशि - 69 हजार 500 रू.
बैंक में जमा राशि - 3 लाख 87 हजार 677 रू.
विभिन्न कम्पनियों के शेयर - 95 हजार 500 रू.
सोना - 110 ग्राम
कृषि भूमि-
भरनावां में कृषि भूमि - 73 बीघा
हुडास में कृषि भूमि - 139.75 बीघा
लाडनूं में कृषि भूमि - 5 बीघा
मकान-
जयपुर के विधानसभा नगर में मकान- 542 गज भूमि में
जयपुर में सी-10, इमली फाटक पर आवासीय मकान- 300वर्ग गज भूमि में
लाडनूं में स्टेशन रोड पर आवासीय मकान- 1818 वर्ग गज भूमि में
भरनावां में पुश्तैनी मकान- 6058 वर्ग गज भूमि में
जोधपुर के हाउसिंग बोर्ड में मकान- 324 वर्ग मीटर प्लंथ लेबल में
पत्नी के नाम की सम्पति:
नकद राशि - 2 लाख 49 हजार 700 रू.
शेयर - 9 हजार 300 रू.
सोना - 300 ग्राम
चांदी - 2 किलोग्राम
झरडिय़ा में कृषिभूमि - 88.5 बीघा

कपाल पीठ: गोठ मांगलोद.... दधिमन्थन से पैदा हुई दधिमती माता: दूध से होता है जिनका अभिषेक.


हमारी पुण्य भूमि मातृभूमि जो भारत भूमि के नाम से जानी जाती हेै, इसमें सभी तीर्थ स्थान ऐसे हैं जहां जाने से प्रत्येक मनुष्य का तन-मन पवित्र हो उठता हैऔर नवजीवन का संचार होता है। पुराणों में 51 महाशक्ति पीठ व 26 उप पीठों का वर्णन मिलता है, इनको शक्ति पीठ या सिद्ध पीठ भी कहते हैं। इनमें से एक दधिमथी पीठ है, जो कपाल पीठ के नाम से भी जानी जाती है। सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाली त्रिनेत्रा भगवती, जो हाथों में चमकीला चक्र, तलवार, धनुष-बाण, अभय मुद्रा, कमल और त्रिशूल धारण किए हुए हैं, जो मोतियों के हार और कुण्डल से युक्त हैं, वह सिंह-वाहिनी वर देने वाली सर्वोत्कृष्टा पूजने योग्य दधिमथी माता सदा मंगल करे।
दधिर्भक्त जनान धात्री मथी तदरिमाथिनी।
देवी दधिमथी नाम धन्वदेशे विराजते।।
देवी का प्राकट्य, मंदिर की स्थिति व निर्माण का वर्णन
दधिमथी का मंदिर पुष्कर अजमेर के उत्तर में 32 कोस पर स्थित है, जो नागौर जिले की जायल तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर गोठ व मांगलोद गांवों के बीच है।
त्रेता युग में अयोध्यापति राजा मान्धाता ने यहां एक सात्विक यज्ञ किया। उस समय माघ शुक्ला सप्तमी थी, देवी प्रकट हुई, जो दधिमथी के नाम से जानी जाती है। शिलालेख उके अनुसार इसका निर्माण गुप्त सम्वत् 289 को हुआ, जो करीब 1300 वर्षों पूर्व मंदिर शिखर का निर्माण हुआ। सम्वत 608 में 14 दाधीच ब्राह्मणों द्वारा 2024 तत्कालीन स्वर्ण-मुद्राओं से इसका गर्भग1ह व 38 स्तम्भों का निर्माण हुआ।
इतिहास-विशेषज्ञों व पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को लगभग 2000 वर्ष प्राचीन माना है। 1908 के शिलालेख के अनुसार दाधीच-कुलभूषण सिद्व-ब्रह्मचारी बुढादेवल निवासी श्री विष्णुदास जी महाराज की आज्ञा से उदयपुर राजा स्वरूपसिंह जी ने चौक व तिबारे, दरवाजे, यात्री-निवास, बावड़ी, मंदिर आदि का निर्माण करवाया।
देवी के वर्तमान मंदिर की मूर्ति के बारे में कहते हैं कि जब देवी प्रकट हो रही थी, तभी वहां ग्वाला गाय चरा रहा था, जमीन के फटने से वहां गर्जना हुई। उसी के साथ देवी का कपाल बाहर निकला, गाएं भागने लगी तब ग्वाला ने कहा- माता ढबजा। उसके कहने से भगवती का कपाल ही बाहर आया। उस समय गायों के दूध से उसका अभिषेक किया गया। आज भी पूरे भारत में यह दधिमथी माता का एक ही मंदिर है, जहां दूध से अभिषेक होता है।
पूजा, उत्सव और मेले
मंदिर के चौक में से शिव परिवार व हनुमान जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर का शिखर बहुत ऊंचा है तथा यहां अधर-खम्भ की महिमा है। जिस दिन ये दोनो पाट बराबर चिपक जाएंगे, उस दिन प्रलय की स्थिति होगी। गर्भगृह में विभिन्न प्रकार की मूर्तियां लगी हुई है। यहां प्रत्येक नवरात्रों में चैत्र व आसोज में मेला लगता है, जो पूरे नौ दिनो तक चलता है। इसमें पूरे भारत-वर्ष के दाधीच बन्धुओं के अलावा सभी वर्गों के लोग आकर मां के दर्शन करते हैं। नवरात्रों के अलावा कार्तिक सुदी अष्टमी, गोपाष्टमी को अन्नकूट महोत्सव व माघ सुदी सप्तमी को प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। वर्ष भर दर्शनार्थी आते हैं।
इस मंदिर की सेवा-पूजा पहले दाधीच ब्राह्मण करते थे, लेकिन कुछ समय बाद पास के गांव दुस्ताऊ के पाराशर ब्राह्मणों को बारी-बारी से सेवा-पूजा के लिए अधिकृत किया, जिसका उनको मंदिर समिति की ओर से पारिश्रमिक दिया जाता है। मंदिर की व्यवस्था हेतु जागीरदारों द्वारा जमीन दी गई, जिसके लगान के रूपये माताजी के मंदिर को मिलते हैं। यहां आस-पास जिप्सम निकलती है, उसके लगान के रूपये भी माताजी के मंदिर को मिलते थे, जो आजादी मिलने के बाद खनिज विभाग ने लगान बंद कर दिया।
मंदिर-स्थल की व्यवस्थाएं और आवागमन
यात्रियों के ठहरने के लिए यहां कमरे आदि का निर्माण हुआ है, पास में दधिमथी सेवायतन नाम से धर्मशाला भी बनाई गई है। मंदिर का जीर्णोद्धार करार्य चल रहा है, उसमें निज मंदिर का जीर्णोद्धार पूरा हुआ है। उसमें करीब एक करोड़ रूपये खर्च हुए हैं। यह खर्च अधिकांश दाधीच ब्राह्मणों ने मिलकर किया है। अन्य कार्य हेतु भारत सरकार व राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग के सहयोग से किया जायेगा। यहां पिछले कई वर्षों से वेद विद्यालय भी चल रहा है, जिसमें ब्राह्मण वर्ग के बालक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसका संचालन आचार्य श्री किशोर जी व्यास वेद प्रतिष्ठान पूना द्वारा किया जा रहा है।
मंदिर में पहुंचने के लिए विभिन्न स्थानों से रेल, बस, टैक्सी आदि से आसानी से पहुंचा जा सकता है। जयपुर, जोधपुर, अजमेर, बीकानेर,दिल्ली, नागौर से डेगाना, छोटी खाटु आदि से रेल द्वारा और उसके बाद टेक्सी या बस द्वारा पहुंचा जा सकता है।
मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्था मंदिर प्रन्यास व अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण महासभा द्वारा की जाती है।
दघिमती माता के बारे में पौराणिक कथा
श्री दुर्गाशप्तशती मार्क ण्डेय पुराण का ही एक प्रमुख अंश है। इसमें देवी भगवती दुर्गा की कथा विस्तृत रूप में वर्णित है। इसमें देवी ने कहा है कि जब जब संसार में दानवी बाधा उपस्थित होगी, अत्याचार बढेगा, धर्म की हानि होगी, हिंसा का प्रभाव बढेगा, तब-तब साधु-संतों की रखा, दुष्टों का संहार, वेदों का संरक्षण करने के लिए मैं प्रत्येक युग में ईश्वरीय शक्ति का अवतार लूंगी।
इत्थ यदा यदा बाधा दानवी स्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्या हं करिष्याम्यरि संक्षयम्।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थितो।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
प्राचीनकाल में महा-बलवान देवता राक्षसों से अमृत लेने के लिए समुद्र-मंथन में असमर्थ हुए, तब महामाया भगवती की प्रार्थना की। तभी विराट् रूप में महामाया प्रकट हुई और उसी दिन से ब्रह्मा ने कहा कि दधिमन्थन के कारण तुम दधिमथी के नाम से प्रसिद्ध होगी। विष्णु तेरे पति, अथर्वा मुनि तेरे पिता, दधिची तेरे भाई व अथर्वा-पुत्र दधिची के पुत्रों की कुलदेवी होगी।
दधिमती का पूजन
दधिमती का पूजन दधिमती मंत्र के यंत्र द्वारा किया जाता है-
ऊँ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौ: भगवते दधिमथ्यै नम:
भारतीय संस्कृति में शक्ति को देवी अर्हता प्राप्त है।
दधिमथ्यै नमस्तुभ्यं
नमस्यै लोकधारिणी।
विश्वेश्वारि नमस्तुभ्यं
नमोथर्वण कन्य के।।
लेखक:- देवदत्त शर्मा (छोटी खाटु वाले), जयपुर
सम्पर्क: 9414251739, 0141-2630466, 2615835

कपाल पीठ: गोठ मांगलोद--- दधिमन्थन से पैदा हुई दधिमती माता... दूध से होता है जिनका अभिषेक.