
हाल ही में केन्द्र सरकार ने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए एक नया कानून बनाया है जिससे महिलाओं की स्थिति मजबूत हुई है। वैसे महिलाओं को कई बार ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनके संदर्भ में वे कानून की मदद ले सकती हैं। पर कानूनी मदद पाने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें अपने कानूनी अधिकारों की ठीक-ठीक जानकारी हो। आइए जानते हैं महिलाओं की समस्याओं और उनसे जुड़े कानूनी पक्षों के बारे में कुछ जानकारी-
विवाह का निजी अधिकार
- यदि आप 18 वर्ष की हो गई हैं तो आपको यह अधिकार मिल जाता है कि जिससे चाहे विवाह कर सकती हैं। इसमें मां-बाप तथा संबंधियों को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
क्यों बदलें शादी के बाद उपनाम
- लड़कियों के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा होता है कि क्या वह शादी के बाद अपने पति का उपनाम अपनाने के लिए बाध्य हैं? यद्यपि भारत में यह परम्परा है कि शादी के बाद लड़की के पहले नाम के साथ उसके पति का नाम तथा उपनाम जुड़ जाता है और वह इसी नाम से जानी जाती है। लेकिन यदि लड़की शादी के बाद अपना पहले का परिचय नहीं बदलना चाहती तो कानूनन वह अपना पुराना नाम और पदवी रख सकती है। बहुत सी कामकाजी महिलाएं अपने नाम से ही जानी जाती हैं। वे अपनी निजी पहचान बनाए रखना चाहती हैं। इस तरह शादी के बाद यदि कोई लड़की अपने पति का नाम तथा उपनाम अपने नाम के साथ नहीं लगाना चाहती तो उसे यह अधिकार है कि वह अपने पुराने नाम से ही जानी जाए। ऐसी परिस्थिति में लड़की को शादी के बाद एक एफिडेविट देना होता है कि उसकी शादी फलां व्यक्ति से हुई है तथा शादी के बाद वह अपना पुराना नाम ही कायम रखना चाहती है।
स्त्री-धन पर खुद का अधिकार
- शादी के बाद लड़की को एक और महत्वपूर्ण अधिकार मिलता है वह यह कि जो भी गहने तथा पैसे वह अपने मां-बाप या ससुराल पक्ष से पाती है, उस पर उसका स्वयं का अधिकार होता है। इस बात के लिए वह बाध्य नहीं है कि तलाक की स्थिति में यह धन वह अपने पति या सास-ससुर अथवा मां-बाप को वापस करे।
बच्चे की कानूनी संरक्षक
- लड़की का अन्य अधिकार यह है कि यदि उसके पति की मौत हो जाती है या उसका तलाक हो जाता है तो वह बच्चे का संरक्षक बनने का दावा कर सकती है। अभी तक औरतों को बच्चों का संरक्षक बनने का अधिकार नहीं मिला था। लेकिन अब यह अधिकार उन्हें मिल गया है।
- यदि पति बच्चे को प्राप्त करने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले अपनी याचिका दायर करता है तो भी पत्नी को दावा करने और बच्चे को प्राप्त करने का अधिकार है। औरतों को मिला यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है।
प्रताडऩा पर पति के खिलाफ रिपोर्ट
- यदि औरत अपने पति या ससुरालवालों के द्वारा प्रताडि़त की जाती है तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत उनके खिलाफ आपराधिक रिपोर्ट लिखवाने का अधिकार है।
तलाक का अधिकार
- हिन्दू विवाह कानून के मुताबिक निम्नलिखित कारणों से महिलाएं विवाह-विच्छेद के लिए अर्जी दे सकती हैं-
- अगर पति ने पूर्व पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह कर लिया हो।
- अगर पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और कहीं और रहते हुए उसे दो वर्ष से ज्यादा हो चुका हो।
- अगर पति-पत्नी पर मानसिक या शारीरिक या दोनों तरीकों से जुल्म करता हो।
- अगर पति धर्मभ्रष्ट हो चुका हो या उसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो।
- अगर पति किसी लाइलाज रोग का शिकार हो।
- सुमित्रा आर्य, सम्पादक
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