
हमारी पुण्य भूमि मातृभूमि जो भारत भूमि के नाम से जानी जाती हेै, इसमें सभी तीर्थ स्थान ऐसे हैं जहां जाने से प्रत्येक मनुष्य का तन-मन पवित्र हो उठता हैऔर नवजीवन का संचार होता है। पुराणों में 51 महाशक्ति पीठ व 26 उप पीठों का वर्णन मिलता है, इनको शक्ति पीठ या सिद्ध पीठ भी कहते हैं। इनमें से एक दधिमथी पीठ है, जो कपाल पीठ के नाम से भी जानी जाती है। सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाली त्रिनेत्रा भगवती, जो हाथों में चमकीला चक्र, तलवार, धनुष-बाण, अभय मुद्रा, कमल और त्रिशूल धारण किए हुए हैं, जो मोतियों के हार और कुण्डल से युक्त हैं, वह सिंह-वाहिनी वर देने वाली सर्वोत्कृष्टा पूजने योग्य दधिमथी माता सदा मंगल करे।
दधिर्भक्त जनान धात्री मथी तदरिमाथिनी।
देवी दधिमथी नाम धन्वदेशे विराजते।।
देवी का प्राकट्य, मंदिर की स्थिति व निर्माण का वर्णन
दधिमथी का मंदिर पुष्कर अजमेर के उत्तर में 32 कोस पर स्थित है, जो नागौर जिले की जायल तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर गोठ व मांगलोद गांवों के बीच है।
त्रेता युग में अयोध्यापति राजा मान्धाता ने यहां एक सात्विक यज्ञ किया। उस समय माघ शुक्ला सप्तमी थी, देवी प्रकट हुई, जो दधिमथी के नाम से जानी जाती है। शिलालेख उके अनुसार इसका निर्माण गुप्त सम्वत् 289 को हुआ, जो करीब 1300 वर्षों पूर्व मंदिर शिखर का निर्माण हुआ। सम्वत 608 में 14 दाधीच ब्राह्मणों द्वारा 2024 तत्कालीन स्वर्ण-मुद्राओं से इसका गर्भग1ह व 38 स्तम्भों का निर्माण हुआ।
इतिहास-विशेषज्ञों व पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को लगभग 2000 वर्ष प्राचीन माना है। 1908 के शिलालेख के अनुसार दाधीच-कुलभूषण सिद्व-ब्रह्मचारी बुढादेवल निवासी श्री विष्णुदास जी महाराज की आज्ञा से उदयपुर राजा स्वरूपसिंह जी ने चौक व तिबारे, दरवाजे, यात्री-निवास, बावड़ी, मंदिर आदि का निर्माण करवाया।
देवी के वर्तमान मंदिर की मूर्ति के बारे में कहते हैं कि जब देवी प्रकट हो रही थी, तभी वहां ग्वाला गाय चरा रहा था, जमीन के फटने से वहां गर्जना हुई। उसी के साथ देवी का कपाल बाहर निकला, गाएं भागने लगी तब ग्वाला ने कहा- माता ढबजा। उसके कहने से भगवती का कपाल ही बाहर आया। उस समय गायों के दूध से उसका अभिषेक किया गया। आज भी पूरे भारत में यह दधिमथी माता का एक ही मंदिर है, जहां दूध से अभिषेक होता है।
पूजा, उत्सव और मेले
मंदिर के चौक में से शिव परिवार व हनुमान जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर का शिखर बहुत ऊंचा है तथा यहां अधर-खम्भ की महिमा है। जिस दिन ये दोनो पाट बराबर चिपक जाएंगे, उस दिन प्रलय की स्थिति होगी। गर्भगृह में विभिन्न प्रकार की मूर्तियां लगी हुई है। यहां प्रत्येक नवरात्रों में चैत्र व आसोज में मेला लगता है, जो पूरे नौ दिनो तक चलता है। इसमें पूरे भारत-वर्ष के दाधीच बन्धुओं के अलावा सभी वर्गों के लोग आकर मां के दर्शन करते हैं। नवरात्रों के अलावा कार्तिक सुदी अष्टमी, गोपाष्टमी को अन्नकूट महोत्सव व माघ सुदी सप्तमी को प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। वर्ष भर दर्शनार्थी आते हैं।
इस मंदिर की सेवा-पूजा पहले दाधीच ब्राह्मण करते थे, लेकिन कुछ समय बाद पास के गांव दुस्ताऊ के पाराशर ब्राह्मणों को बारी-बारी से सेवा-पूजा के लिए अधिकृत किया, जिसका उनको मंदिर समिति की ओर से पारिश्रमिक दिया जाता है। मंदिर की व्यवस्था हेतु जागीरदारों द्वारा जमीन दी गई, जिसके लगान के रूपये माताजी के मंदिर को मिलते हैं। यहां आस-पास जिप्सम निकलती है, उसके लगान के रूपये भी माताजी के मंदिर को मिलते थे, जो आजादी मिलने के बाद खनिज विभाग ने लगान बंद कर दिया।
मंदिर-स्थल की व्यवस्थाएं और आवागमन
यात्रियों के ठहरने के लिए यहां कमरे आदि का निर्माण हुआ है, पास में दधिमथी सेवायतन नाम से धर्मशाला भी बनाई गई है। मंदिर का जीर्णोद्धार करार्य चल रहा है, उसमें निज मंदिर का जीर्णोद्धार पूरा हुआ है। उसमें करीब एक करोड़ रूपये खर्च हुए हैं। यह खर्च अधिकांश दाधीच ब्राह्मणों ने मिलकर किया है। अन्य कार्य हेतु भारत सरकार व राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग के सहयोग से किया जायेगा। यहां पिछले कई वर्षों से वेद विद्यालय भी चल रहा है, जिसमें ब्राह्मण वर्ग के बालक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसका संचालन आचार्य श्री किशोर जी व्यास वेद प्रतिष्ठान पूना द्वारा किया जा रहा है।
मंदिर में पहुंचने के लिए विभिन्न स्थानों से रेल, बस, टैक्सी आदि से आसानी से पहुंचा जा सकता है। जयपुर, जोधपुर, अजमेर, बीकानेर,दिल्ली, नागौर से डेगाना, छोटी खाटु आदि से रेल द्वारा और उसके बाद टेक्सी या बस द्वारा पहुंचा जा सकता है।
मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्था मंदिर प्रन्यास व अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण महासभा द्वारा की जाती है।
दघिमती माता के बारे में पौराणिक कथा
श्री दुर्गाशप्तशती मार्क ण्डेय पुराण का ही एक प्रमुख अंश है। इसमें देवी भगवती दुर्गा की कथा विस्तृत रूप में वर्णित है। इसमें देवी ने कहा है कि जब जब संसार में दानवी बाधा उपस्थित होगी, अत्याचार बढेगा, धर्म की हानि होगी, हिंसा का प्रभाव बढेगा, तब-तब साधु-संतों की रखा, दुष्टों का संहार, वेदों का संरक्षण करने के लिए मैं प्रत्येक युग में ईश्वरीय शक्ति का अवतार लूंगी।
इत्थ यदा यदा बाधा दानवी स्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्या हं करिष्याम्यरि संक्षयम्।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थितो।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
प्राचीनकाल में महा-बलवान देवता राक्षसों से अमृत लेने के लिए समुद्र-मंथन में असमर्थ हुए, तब महामाया भगवती की प्रार्थना की। तभी विराट् रूप में महामाया प्रकट हुई और उसी दिन से ब्रह्मा ने कहा कि दधिमन्थन के कारण तुम दधिमथी के नाम से प्रसिद्ध होगी। विष्णु तेरे पति, अथर्वा मुनि तेरे पिता, दधिची तेरे भाई व अथर्वा-पुत्र दधिची के पुत्रों की कुलदेवी होगी।
दधिमती का पूजन
दधिमती का पूजन दधिमती मंत्र के यंत्र द्वारा किया जाता है-
ऊँ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौ: भगवते दधिमथ्यै नम:
भारतीय संस्कृति में शक्ति को देवी अर्हता प्राप्त है।
दधिमथ्यै नमस्तुभ्यं
नमस्यै लोकधारिणी।
विश्वेश्वारि नमस्तुभ्यं
नमोथर्वण कन्य के।।
लेखक:- देवदत्त शर्मा (छोटी खाटु वाले), जयपुर
सम्पर्क: 9414251739, 0141-2630466, 2615835
1 comment:
जय जय दधिमथी मात भवानी।
कृपा करो हम पर महाराणी ।।
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