Saturday, April 23, 2011

एसबीबीजे से उठ रहा है लोगों का विश्वास... किसी भी खाते से कोई भी उठा सकता है मनचाही रकम


नसीराबाद (निर्भीक समाचार सेवा)। स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर ने अपने यहां खोले गए एक बैंक खाते को इस तरह का रूप दे दिया कि उसमें से कोई भी व्यक्ति जब चाहे रूपये निकाल सकता है, और मर्जी आए तब जमा करवा सकता है। यह कोई आश्चर्य नहीं है, हकीकत है और इस हकीकत को अंजाम दिया है एसबीबीजे की नसीराबाद शाखा ने। यहां लोगों में यह आम चर्चा है कि इस बैंक में अब बचत खाते, चालू खाते और सावधि जमा खाते के अलावा यह एक नया प्रकार सार्वजनिक बैंक खाता भी खोला जाने लगा है। किसी के भी खाते से कोई भी रूपये निकाल ले और खाताधारी को खबर तक नहीं लगे और ता और उसे मांगे जाने के बावजूद कोई जानकारी तक नहीं दी जावे तो इस बैंक से ग्राहक का पूरा भरोसा ही उठ जाता है।
31 सालों से था बचत खाता
एसबीबीजे की इस शाखा में 31 साल पहले एक खाता खुलवाया था, यहां के डी.ए.वी. स्कूल के प्रधानाध्यापक मदनलाल गर्ग ने। गर्ग यहां के जाने-माने वकील के अलावा शिक्षाविद भी है। इस समय वे 83 साल के हैंं। विद्यालय से उनकरी सेवानिवृति 1988 में हुई। वे अपने अध्यापन काल से लेकर रिटायरमेंट के बाद तक भी इस खाते में लगातार अपनी बचत की सारी राशि जमा करवाते रहे, ताकि कभी वक्त-जरूरत और बुढापे में काम आवे।
केवल जमा ही करवाया हमेशा
इन मितव्ययी व्यक्ति ने अपने खाते में से कभी भी राशि निकालने के बजाये हमेशा राशि जमा करवाते रहे। उन्होंने कभी चैक बुक तक नहीं प्राप्त की।
बिना निकाले हुआ खाता साफ
इस जमाकर्ता को अचानक 2003 में जानकारी मिली कि उनके खाते को साफ किया जा चुका, उसमें अब कोई खास बैलेन्स नहीं बचा है, तो वे एकबारगी तो सकते में आ गए।
पसीने आ गए खाते की जानकारी तक लेने में
इसके बाद उन्होंने अपने खाते का पूरा विवरण जानने के लिए सैंकड़ों बार प्रयास किए, परन्तु बैंक अधिकारियों ने उन्हें कोई सहयोग नहीं किया। बैंक की मांग पर उन्होंने 150 रूपये की शुल्क भी जमा करवाया, फिर भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई। जब बैंक के उच्चाधिकारियों, बैंक्रिग लोकपाल, सूचना आयोग तक अपीलें दाखिल की, तब कहीं जाकर करीब छह सालों बाद बैंक ने तीन-चार किश्तों में खाते का विवरण तो उपलब्ध करवाया, परन्तु अभी तक यह नहीं बताया गया कि उनका निजी खाता संयुक्त खाता कैसे बन गया?
बिना जानकारी बना दिया संयुक्त खाता
यह बचत खाता संख्या 10348 को बैंक ने बिना खातेदार की जानकारी के संयुक्त खाता बना डाला और यहीं तक मामला सीमित नहीं रहा, इस खाते को एक तरह से सार्वजनिक खाता तक बना दिया गया और बरसों से बैंक उसे इस रूप में संचालित भी कर रहा था।
किस-किस के नाम जुड़े और कटते रहे खाते में
खुद बैंक के कथनानुसार उक्त खाता (बैंक की मर्जी से ही सही) 19 अगस्त 1989 को संयुक्त खाते के रूप में बदला जाकर किसी वी.के.गर्ग का नाम भी उसमें जोड़ दिया गया था। इस वी.के.गर्ग की मृत्यु 15 फरवरी 2004 को हो चुकी। लेकिन इस बैंक खाते की वास्तविकता यह है कि इसमें से तथाकथित संयुक्त खातेदार की मृत्यु से पहले और बाद में भी कुछ अन्य लोगों द्वारा भी लेदेन किया जाता रहा था।
बैंक नहीं बताता अज्ञात लोगों के नाम
मदनलाल गर्ग के इस बैंक खाते में फर्जी तरीकों से अनेक लोग रूपये निकालने, जमा कराने का काम करते रहना बताया गया है। इसमें कूट-रचना द्वारा 19 अगस्त 1989 को किसी वी.के.गर्ग का नाम संयुक्त किए जाने से पहले भी अनेक लागों ने इसमें से रूपये निकाले थे, और संयुक्त नाम जोड़े जाने के बाद भी अज्ञात लोग भी इसमें लेनदेन करते रहे। आश्चर्य है कि वी.के.गर्ग की मौत 15 फरवरी 2004 के बाद भी अनेक लोग इसमें से रूपये निकालत-डालतेे रहे हैं।
बैंक अधिकारियों की चुप्पी क्यों?
अपने खाते से राशि निकालने वाले लोगों की जानकारी बैंक के रिकॉर्ड से दिए जाने की मांग पिछले सात सालों से लगातार खाताधारी मदनलाल गर्ग करते रहे हैं, मगर बैंक अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। लगातार लिखापढी का क्रम जारी रखते हुए अभी हाल ही में उन्होंने फिर एक रजिस्टर्ड पत्र बैंक अधिकारियों को देकर जानकारी मांगी है, परन्तु 14 सितम्बर 2010 से अब तक अधिकारियों ने उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी है।

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