लाडनूं व सुजानगढ शहरों के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 65 पर जसवंतगढ की जमीन पर सम्पूर्ण सुजला नाम से पुकारे जाने वाले क्षेत्र में स्नातकोत्तर शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में सुस्थापित सुजला महाविद्यालय के नाम से मशहूर राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ का वर्तमान स्वरूप कई मोड़ों से गुजरने के बाद निखरा है। सुजानगढ के ज्ञानीराम हरकचन्द सरावगी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय और लाडनूं के सेठ मोतीलाल बैंगानी विज्ञान महाविद्यालयों को मिलाकर एकरूप में गठित यह महाविद्यालय आज एक विशाल रूप ले चुका है।
ज्ञानीराम हरकचंद सरावगी महाविद्यालय का सफर
सन 1968 में सुजानगढ कस्बे में ज्ञानीराम हरकचंद सरावगी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय का गठन किया गया था। इसे अपने शैशवकाल में सुजानगढ के भंवरलाल काला बाल-मंदिर में मात्र 66 विद्यार्थियों की अल्प संख्या के साथ कला एवं वाणिज्य की प्रथम वर्ष स्नातक की कक्षाओं से शुरू किया गया था। इसके बाद 1 जुलाई 1969 में इस महाविद्यालय को राजाजी की कोठी, सुजानगढ में स्थानान्तरित किया गया। बाद में 28 जनवरी 1974 को इसे जसवंतगढ में निर्मित वर्तमान भवन में स्थानान्तरित किया गया, तब से यह निरन्तर यहां चल रहा है। जब इस महाविद्यालय का शिलान्यास किया गया था, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखडिय़ा यहां हेलिकॉप्टर से आए थे। सुजानगढ विधायक फूलचंद जैन के समय में यहां लाडनूं, सुजानगढ, जसवंतगढ और आस-पास ही नहीं सुदूर क्षेत्रों से लोग इस निर्जन स्थान पर पहुंचे और हजारों की संख्या में इस शिलान्यास समारोह में शिरकत की। रेैले के रैले बढते लोगों में उस समय अपार हर्ष देखा गया था।
सेठ मोतीलाल बैंगानी विज्ञान महाविद्यालय का सफरनामा
सत्र 1968-69 में सेठ मोतीलाल बैंगानी विज्ञान महाविद्यालय का प्रारम्भ किया गया था। शुरू में इस महाविद्यालय क ी अध्ययन-व्यवस्था लाडनूं की राजकीय जौहरी उच्च माध्यमिक विद्यालय में शुरू की गई थी। बाद में इसका एक अलग भवन जसवंतगढ की जमीन पर उचित स्थान जानकर बनाया गया। अपने इस नए भवन में यह विज्ञान महाविद्यालय सफलता-पूर्वक चलता रहा। इसमें छात्र संख्या भी बढी। जसवंतगढ ग्राम से जसवंतगढ रेलवे स्टेशन जाने वाली सड़क के एक तरफ कला व वाणिज्य महाविद्यालय था, तो उसके दूसरी तरफ विज्ञान महाविद्यालय एकदम आमने-सामने स्थापित थे, इससे पढने वाले छात्रों में भी परस्पर सामंजस्य रहता था। उस समय लाडनूं व सुजानगढ और जसवंतगढ क्षेत्रों से कॉलेज में पढने वाले सभी छात्र प्राय: साईकिलों से आवागमन करते थे। लाडनूं से जसवंतगढ जाने वाली सड़क को कॉ्रस करके बाईपास रोड स्व. दीपंकर शर्मा के विधायक-काल में बनाई गई थी, जा कालेज के बिलकुल पास से गुजरती थी और एससे आने जाने वाले विद्यार्थियों का मार्ग छोटा होने से समय कम लगता था। कालान्तर में खुत-मालिको ने इस सड़क मार्ग को धीरे-धीरे बंद करके अपने खेतों में मिला लिया।
दोनों महाविद्यालयों का एकीकरण
अपने शुरूआती करीब डेढ दशक तक ये दोनों महाविद्यालय प्रशासनिक एवं अध्यापन की दृष्टि से बिलकुल पृथक-पृथक संचालित किए जाते रहे। बाद में प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से राज्य सरकार ने आदेश जारी करके 1 जनवरी 1982 को दोनों महाविद्यालयों को एकीकृत कर दिया। इसप्रकार दोनों महाविद्यालय संयुक्त होकर एक ही व्यवस्था के अन्तर्गत आ गए। इस राजकी महाविद्यालय में कला, वाणिज्य व विज्ञान तीनों संकाय की कक्षाएं संचालित होने व प्रशासनिक एकरूपता होने से छात्रों के लिय सुविधाजनक हो गया।
स्नातकोत्तर तक क्रमोन्नयन
महाविद्यालय में पढने वाले छात्रों की निरन्तर बढती संख्या और सम्पूर्ण सुजलांचल से स्नातकोत्तर करने की उठती मांग के मद्देनजर इस महाविद्यालय में वाणिज्य व विज्ञान संकायों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा की सुविधा राज्य सरकार ने मंजूर करते हुए उपलब्ध करवा दी।यहां स्नातक स्तर पर प्रथम वर्ष प्रवेश के लिए कुल 550 सीटों की व्यवस्था उपलब्ध, जिसमें इस वष्र कुछ बढोतरी की गई है। इनमें राजकीय नियमानुसार अजा को 16 प्रतिशत, अजजा को 12 प्रतिशत, ओबीसी को 21 प्रतिशत आरक्षण प्रवेश में उपलब्ध है। वर्तमान में इस महाविद्यालय में कुल 1600 नियमित छात्र अध्ययनरत हैं। इस केन्द्र पर करीब 2500 से 3000 छात्र स्वयंपाठी रूप में परीक्षाएं देते हैं।
महाविद्यालय में सुविधाएं
महाविद्यालय में अलग-अलग विषयों के अध्यापन हेतु 20 व्याख्याता कार्यरत है। यहां मौजूद पुस्तकालय में करीब 40 हजार पुस्तके विभिन्न विषयों से सम्बंधित मौजूद हैं। इसमें 20 प्रकार की विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से आजी हैं, जिनसे छात्र नवीनतम जानकारियां प्राप्त करके अपना ज्ञानवद्र्धन कर सकते हैं। महाविद्यालय में सुसज्जित कम्प्यूटर लैब. एवं रासायनिक व जैविक प्रयोगशाला भी उपलब्ध है। शैक्षेणेत्तर गतिविधियों में यहां एन.सी.सी., युवा विकास केन्द्र, एन.आर.सी.सी. का संचालन भी किया जाता है।
प्रमुख समस्याएं
यह महाविद्यालय सुजलांचल के आम लोगों का प्यार समेटे हुए होने के साथ ही उत्कृष्ट परीक्षा-परिणाम भी देता आया है। परन्तु अनेक समस्याएं ऐसी भी हैं, जिनके कारण विद्यार्थी अपने नियमित अध्ययन में अनेक परेशनियों का सामना करने पर मजबूर हैं।
बस-स्टेण्ड की जरूरत: लाडनूं, जसवंतगढ और सुजानगढ तीनों शहरों से दूर निर्जन स्थान पर अवस्थित होने से यहां आने-जाने वाले छात्रों को आवागमन की परेशानियां प्रतिदिन झेलनी पड़ती हैं। ग्राम कसुम्बी, लैड़ी, रोडु, निम्बी जोधां, तंवरा, दुजार, बाकलिया, छापर, चाड़वास, सालासर आदि सैंकड़ों गावों से रोजमर्रा आने वाले छात्रों को भी कॉलेज के सामने बसें नहीं रूकने से काफी परेशान होना पड़ता है और उसका असर उनकी पढाई पर भी पड़ता है। इसके समाधान के रूप में मेगा हाई वे और एन.एच. 65 के क्रास पर बस स्टेण्ड घोषित करके इस समस्या का समाधान अवश्य करना चाहिए।
शुद्ध पेयजल का अभाव: क्षेत्र के प्रसिद्ध पाबोलाव तालाब और जोधानाडा तालाबों के बीच में स्थित होने के बावजूद कॉलेज में अध्ययन करने वाले छात्रों को शुद्ध पीने का पारी नसीब नहीं हो पाता है। जन-प्रतिनिधि और कालेज प्रशासन दोनों ही इस महत्वपूर्ण समस्या की ओर से आंखें मूंदे हुए हैं। जबकि यह सर्वाधिक प्राथमिकता वाली समस्या है। कालेज प्रशासन इस कालेज को चूरू जिले का मानने के कारण चूरू जिले के प्रशासन को इस सम्बंध में लिखता है, जबकि यहां सारा प्रशासनिक नियंत्रण नागौर जिले का लागू होता है। अब इन दो जिलों के बीच फंसी इस कालेज को सुविधाएं उपलब्ध कराए तो आखिर कौन?
-लोकेश नाहर,
कलम कला संवाददाता
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